Usha sharma

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -22-Apr-2023

घर याद आता है..... 


कहाँ भूल पाते हैं हम कभी बचपन वो गालियां, 
जिम्मेदारी के झमेले में उलझे घर याद आता है।

अल्हड़पन की बातें, दोस्तों संग मस्ती मुलाकातें, 
समझदारी के इस जीवन बंधन में घर याद आता है। 

दिनभर के थके हारे तन को ढलती शाम में अक्सर, 
माँ की गोद पापा के दुलार संग, घर  याद आता है। 

उम्र की आती ढलान पर, लखड़ाते कदमों से चलते, 
उस घर आंगन में कुछ पल बिताने घर याद आता है।

© उषा शर्मा 

   18
6 Comments

madhura

23-Apr-2023 02:00 PM

very osm poem

Reply

Punam verma

23-Apr-2023 08:26 AM

Very nice

Reply

Gunjan Kamal

23-Apr-2023 08:00 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

Reply